[कहते है जोड़ियाँ ऊपरवाला बनाता है, पर ऊपरवाले की जोड़ी कौन बनाता होगा, यह शायद ही किसी ने सोचा हो.विधाता के खेल भी बड़े निराले हैं, वह खुद ही रचनाकार भी है और खुद ही एक अनुपम रचना भी.वही सारी कथाएं लिखता है, वही उन कथाओं का प्रधान किरदार भी बनता है.यह हम इन्सानों की अनभिज्ञता होती है कि हम उसके असली स्वरुप को पहचान नहीं पाते. कारण, हमारी आँखों पर सांसारिक माया के पर्दे पड़े होते हैं. ऐसी ही एक अनभिज्ञता ने गिरिराज हिमालय कि पत्नी मैना को भी घेर लिया था, जब उन्होंने देव-ऋषि-गन्धर्वों के अतिरिक्त भूत-पिशाच और नागों की विशाल संख्या को पुत्री पार्वती से ब्याह करने आये भगवान् शंकर की बारात में नाचते गाते देखा. ऐसा अनोखा दूल्हा, ऐसी अनोखी बारात-न कभी किसी ने देखी थी, न सुनी थी. जिसके परिणाम-स्वरुप, माता मैना ने अपनी कन्या का विवाह करने से इन्कार कर दिया.पर, देवर्षि नारद के रहते हुए भला कौन और कबतक भ्रम के भँवर में डूबा रह सकता है ? उन्होंने उन्हें इस आदि-युगल के वास्तविक स्वरुप के दर्शन कराये और उस सुखद घटना को साकार किया, जिसकी आस देवगण सहस्त्र वर्षों से लगाए हुए थे. ]
चले महेश्वर दूल्हा बनकर कर अद्भुत श्रृंगार,
शिवजी तो आये हैं माता मैना के द्वार.
आई शुभ मंगल-बेला, परछन की जानकर,
सखियों संग मैना आयीं, शिवजी का ध्यानकर.
सोने के थाल में थी, मंगलमय आरती,
वेश अनोखा देख, भय से पुकारतीं-
"ऐसे वर से व्याह न होगा, सुन ले जग संसार".
शिवजी तो आये हैं माता मैना के द्वार............
बेटी सुकुमार मेरी, पाया वरदान में,
ना दूँगी जोगी को मैं, धन अपना दान में.
कैसी विधाता ने जोड़ी बना दी !
जाने किस कर्म की ऐसी सजा दी.
देवमुनि नारद समझायें, महिमा अपरम्पार.
शिवजी तो आये हैं माता मैना के द्वार............
आदि अनंत काल का है ये नाता,
इनके आगे नतमस्तक, देवि ! विधाता.
करते हैं रचना दोनों, मिलकर संसार की,
इनसे ही सृष्टि सारी, मूरत हैं प्यार की.
शंका छोड़ो ब्याह रचाओ, करने जग-उद्धार.
शिवजी तो आये हैं माता मैना के द्वार............
* लेखक एवं गीतकार : गौरीशंकर श्रीवास्तव "दिव्य"