भारत में माता सरस्वती की उपासना सदा से होती आयी है. प्रत्येक कवि अपने काव्य के आरम्भ में ताल, लय, स्वर, राग-रागिनी आदि का प्रादुर्भाव करने वाली व सप्त स्वरों का ज्ञान प्रदान करने वाली माँ सरस्वती की वन्दना करता है. उनकी उपासना का फल है, परमतत्व को प्राप्त कर लेना. इसी फल के लिये श्रुतियाँ उन वाग्देवी की स्तुति करती हैं. जिनकी कृपा से मानव ब्रह्म तक पहुँच सकता है, मानव मात्र का परम कर्तव्य है ऐसी वात्सल्यमयी जननि की शरण होकर अपना जीवन सार्थक कर ले.
श्रीमद् देवी भागवत में जहाँ पंच प्रकृति का वर्णन आता है, वहाँ माता सरस्वती के नाम का भी उल्लेख है -
गणेश जननि दुर्गा राधा लक्ष्मी सरस्वती।
सावित्री च सृष्टिविधौ प्रकृति पंचधा स्मृता।।
(श्रीमद् देवी भागवत 9/4 / 4)
आद्याशक्ति पराप्रकृति के यह पाँच स्वरूप हैं, इन्हीं पर सम्पूर्ण सृष्टि निर्भर करती है.
सकल कला-विद्या की जननि, वाणी-विद्या-संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी, ब्रह्माजी के कार्य की सहयोगिनी, ज्ञान-यश प्रदायिनी, सकल ब्रह्माण्ड में सुख-सौंदर्य़ की सृजनकर्ता माता सरस्वती का वास्तविक वरदान सद्-विवेक एवं सदाचरण है, ऋषिजन ऐसा मानते हैं.
ऋग्वेद में उल्लिखित देवि सरस्वती तंत्रशास्त्र में प्रसिद्ध तारादेवी के नाम से पूजित होती हैं, जो कि माता वाग्देवी का ही एक अलौकिक रूप हैं, जबकि श्रुति में इन्हें भगवती जगदम्बा कहा गया है. सावित्री और सरस्वती दो पृथक स्वरूप धारण कर इस संसार का कल्याण करती हैं. 'श्रीदुर्गा सप्तशति' के अनुसार इन्हीं देवी ने आदिशक्ति माता गौरी के शरीर से कौशिकी रूप में प्रकट होकर शुम्भ-निशुम्भ का वध किया और विश्व में सुख-शान्ति की ज्योति पुन: प्रज्ज्वलित की.
प्रत्येक हिन्दू सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण द्वारा तदनन्तर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अनन्त, धर्म, मुनीश्वर, सनकगण, देवता, मुनि, राजा और मनुगण द्वारा पूजित देवि सरस्वती की माघ शुक्ल पंचमी तिथि को की जानेवाली महा-उपासना के पर्व 'बसंत पंचमी' को विद्यारम्भ का श्रेष्ठ मुहूर्त मानते हैं. इसदिन विशुद्ध तन, मन, वचन से शास्त्रोक्त विधि द्वारा श्वेत पुष्प, श्वेत चन्दन और श्वेत वस्त्र अर्पण कर माँ की आराधना करने से श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है.
वेदोक्त ध्यान- जगन्माता सरस्वती का श्रीविग्रह शुक्लवर्ण का है. यह परम सुन्दरी देवी सदा हँसती रहती हैं. इनके परिपुष्ट श्रीविग्रह के समक्ष कोटि चंद्र की प्रभायें भी तुच्छ हैं. ये विशुद्ध चिन्मय वस्त्र धारण किये हुये हैं. इनके एक हाथ में वीणा है और दूसरे में पुस्तक. सर्वोत्तम रत्नो से निर्मित आभूषण इन्हें सुशोभित कर रहे हैं. प्रकृति के प्रधान देवताओं ब्रह्मा, विष्णु, शिव तथा सुरगणों से ये सदा सुपूजित हैं. श्रेष्ठ मुनि, मनु तथा मानव इनके श्रीचरणों में शीश झुकाते हैं. ऐसी जगज्जननि माता भारती देवी शारदा- सरस्वती को मैं भक्तिपूर्वक बारम्बार प्रणाम करता हूँ.