पन्द्रह सौ चौवन विषै,कालिन्दी के तीर,
श्रावण-शुक्ला-सप्तमी तुलसी धरयो शरीर.
डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में लोकनायक वही हो सकता है जो समन्वय कर सके,क्योंकि भारतीय समाज में विविध प्रकार की परस्पर विरोधी संस्कृतियाँ,साधनाएँ,विचार और धर्म-सिद्धांत प्रचलित हैं.
महाकवि तुलसीदास का आविर्भाव ऐसे काल में हुआ था,जब हिन्दू-जाति यवन-शासकों की अधीनता स्वीकार कर चुकी थी.महाकवि तुलसीदासजी ने "श्रीराम चरित मानस" जैसे अद्वितीय ग्रन्थ की रचना कर भारतीय जनता के ह्रदय में भक्ति का बीजारोपण करते हुये उसे 'नाथ एवं सिद्ध-पंथ ' की काव्यगत दुरुहता से बचाकर सांस्कृतिक चेतना रूपी अवलेह प्रस्तुत किया.
अमर कवि की सम्पूर्ण कृति-वाटिका में सौष्ठव,माधुर्य और मकरंद की मदक प्रभविष्णुता की दृष्टि से "मानस" सर्वोत्कृष्ट पुष्पराज माना गया है.गोस्वामीजी ने इस महाकाव्य के द्वारा जगत की उत्पीड़ित आत्मा पर शान्ति-क्षुधा का जो लेप लगाया है,उसकी समता विश्व में दुर्लभ है. संसार-सागर में डूबते हुये मानव को बचाने की अद्भुत शक्ति इस अनुपम ग्रन्थ में भरी पड़ी है.
कविवर तुलसीदासजी की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि उन्होंने कहीं भी शिक्षा व् सन्देश के नाम पर उपदेश देने का प्रयत्न नहीं किया है,वरन अपने आराध्यदेव श्रीराम के आदर्श-चरित्र में ही कथा-प्रसंगों के माध्यम से उन्होंने संसार के मन-मस्तिष्क में छाये अन्धकार को समूल नष्ट कर देने की अद्भुत कला दिखायी है और इसप्रकार श्रीराम-चरित के गौरवपूर्ण वर्णन द्वारा "जड़-चेतन गुण-दोषमय" विश्व का पूर्णतम चित्र उपस्थित कर मानव के कर्तव्यों व् अधिकारों का सरल भाषा में सार्थक बोध कराया है.
हम प्रणाम करते हैं ऐसे महान रचनाकार को,जिन्होंने न केवल भारत की भावी तस्वीर बदलने में अहम् भूमिका निभायी,बल्कि पतन के मुहाने पर खड़े "हिन्दू-धर्म" की पुनर्स्थापना की.
" जकड़ा था जब देश हमारा,यवनों की ज़ंजीरों से,
त्राहि-त्राहि की ध्वनि आती थी,सागर के भी तीरों से."
तुलसी ने तब मुक्त कंठ से रामचरित का गान किया,
भाषा में रामायण लिखकर भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
भूल रही थी हिन्दू जनता,धर्म कर्म की बातों को,
सहती थी अपनी संस्कृति पर,यवनों के आघातों को.
संकट में है धर्म हमारा,जब तुलसी ने जान लिया,
भाषा में रामायण लिखकर,भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
यवन शहंशाह ने स्वीकारा,धर्म मिटाना खेल नहीं,
जिसकी आशंका थी मुझको,तुलसी ने कर दिया वही.
जाग उठी अब हिन्दू जनता,मैंने यह पहचान लिया,
भाषा में रामायण लिखकर,भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
भक्ति-धर्म और ज्ञान-कर्म का,किया समन्वय तुलसी ने,
राम-कथा की अमृत-धारा,हुयी प्रवाहित घर-घर में.
सबको निज-कर्तव्यों का,तुलसी ने ज्ञान प्रदान किया,
भाषा में रामायण लिखकर,भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
गूँज उठा भारत के कोने-कोने में तुलसी का स्वर,
हुयी जागृत हिन्दू-जनता,"राम-कथा" को अपनाकर.
राम-भक्ति की सुधा पिलाकर,कवि ने जीवन-दान दिया,
भाषा में रामायण लिखकर,भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
जबतक हिन्दू-धर्म रहेगा,गंगा-यमुना की धारें,
चन्द्र और आदित्य रहेंगे,चमकेंगे नभ में तारे,
अमर रहेंगे "तुलसी" जिसने,मानव का उत्थान किया.
भाषा में रामायण लिखकर,भारत का कल्याण किया.
जय-जय-जय तुलसी !!!! जय-जय-जय-जय तुलसी !!!!!!!
* लेखक एवं गीतकार : गौरीशंकर श्रीवास्तव "दिव्य"