रसब्रह्म के विग्रह भगवान श्रीराधाकृष्ण की लीलाभूमि ब्रज में होली का पर्व जिस अनुपम ढंग से मनाया जाता है, उसका महत्व सम्पूर्ण भारत में सर्वोपरि है. कौन नहीं जानता ब्रज की लट्ठ्मार होली के बारे में ! जिसे वहाँ की लोकभाषा में 'हुरंग' कहते हैं. राधा की जन्मभूमि बरसाना और कृष्ण का क्रीड़ास्थल नन्दगाँव पूरे ब्रजमण्डल में होली उत्सव के प्रमुख केन्द्र रहे हैं. एक समय था, जब श्रीकृष्ण अपने सखाओं के साथ टोली बनाकर नन्दगाँव और बरसाना में होली खेलते हुये समस्त ब्रजमण्डल को आनन्द विभोर कर देते थे एवं आकाशमण्डल रंग गुलाल से आच्छादित हो उठता था. भक्तजन आज भी उसी परम्परा का निर्वाह करते आ रहे हैं.
फाल्गुन मास की शुक्ल अष्टमी से होलाष्टक आरम्भ होने पर नन्दगाँव के गोसाईं लोग भगवान श्रीकृष्ण के मन्दिर में एकत्र होकर प्रेमरस में सिक्त पदों को गाते हैं. तदनन्तर अपने इष्टदेव और प्यारे सखा श्रीकृष्ण से होलिकोत्सव प्रारम्भ करने की अनुमति माँगते हैं. अगले दिन प्रात:काल श्रीराधाजी की ससुराल नन्दगाँव के लोग धमाचौकड़ी मचाते हुये रंग अबीर की वर्षा के बीच 'प्रियाकुण्ड' में स्नान करके बरसाना के सुप्रसिद्ध श्रीलाडिलीजी (राधिकाजी) के मन्दिर में एकत्र होकर बरसानावासियों के संग फाग व रसिया गाते हैं. फिर तो रंग-अबीर की धूम मच जाती है और इन लोगों का स्वागत रंग-अबीर के साथ ही लाठियों द्वारा किया जाता है. यही यहाँ की होली की विशेषता है.
बरसाना की रंगीली गलियों से होते हुये जब होली खेलने वालों का दल निकलता है तो बरसाना की स्त्रियां अपने कोमल करों में लाठियाँ लिये उपस्थित रहती हैं. ज्योंही नन्दगाँव के पुरुष उन्हें ललकारते हैं कि ब्रज की रोमांचक होली आरम्भ हो जाती है. नन्दगाँव के पुरुष इन प्रहारों को ढालों पर रोकते हैं. कभी-कभी तो ऐसे भीषण प्रहार किये जाते हैं कि दर्शकों की भीड़ सहम जाती है, परन्तु नन्दगाँव के ये कृष्णभक्त इस लट्ठमार होली से तनिक भी विचलित नहीं होते और आनन्दमग्न हो इस पर्व की गरिमा बढ़ाते हैं. संयोगवश चोट लगने पर ब्रज की पवित्र मिट्टी इनके घावों पर लेप का काम करती है और इन्हें पुन: प्रेरित करती है पर्व में सम्मिलित होने के लिये. नियमानुसार, इस अवधि में बरसाना का पुरुष वर्ग इस उत्सव से दूरी बनाये रखता है. इसप्रकार, एक घंटे तक चली इस लट्ठमार होली में स्वयं को लाठियों से बचाकर बरसाना की स्त्रियों को रंगों से सराबोर कर देना, यही नन्दगाँव के पुरुषदल का एकमात्र उद्देश्य होता है.
दूसरे दिन बरसाना की इस लट्ठमार होली की पुनरावृत्ती नन्दगाँव में देखने को मिलती है, जहाँ गाते-बजाते रंग-अबीर उड़ाते फगुवा लेने पहुँचे बरसाना के पुरुषों पर नन्दगाँव की स्त्रियों द्वारा पूरे वेग से लाठियाँ बरसायी जाती हैं. लाठी लिये एक पंक्ति में खडी लगभग सौ स्त्रियों के समक्ष हाथ में कटीली डंडियाँ थामे पुरुषों का समूह उनसे अपनी रक्षा करता है और लाठी के प्रहार से स्वयं को बचाते हुये नन्दगाँव की स्त्रियों की काया लाल हरे पीले रंंगो में रंग कर ही घर लौटता है. इसप्रकार नन्दगाँव-बरसाने की यह लट्ठमार होली आनन्द्पूर्वक सम्पन्न होती है, जिसे देखने के लिये देश के कोने-कोने से भारी संख्या में लोग प्रतिवर्ष यहाँ पहुँचते हैं.
* लेखक : गौरीशंकर श्रीवास्तव " दिव्य "