[भाद्रपद की अँधियारी अष्टमी की अर्धरात्रि को कंस के कारागार में दुष्टों के दमन व् जनकल्याण के निमित्त श्रीहरि-विष्णु देवकी के अष्टम-गर्भ से परम अद्भुत देवकीनंदन श्रीकृष्ण रूप में अवतरित हुये. तदनन्तर, साक्षात् चतुर्भुजी स्वरुप का दर्शन प्रदानकर वसुदेवजी को आदेश दिया- " भय न कंस का करो, मुझे गोकुल पहुँचाओ." माता देवकी की प्रार्थना पर प्रभु अपने शंख, चक्र, गदा और पद्मधारी अलौकिक रूप को शिशुरूप में परिवर्तित करते हुये उन्हें पुत्रसुख का आनन्द प्रदान करते हैं. प्रभु के आदेशनुसार और उनकी अनुकम्पा से वसुदेवजी सारी बाधाओं से इतर उन्हें गोकुल ले जाने के लिए चल पड़े.
श्रीकृष्ण की आनन्दवर्धक किलकारी नन्दभवन के साथ ही साथ समस्त ब्रजमण्डल में हर्षोल्लास का वातावरण ले आती है. यहाँ तक कि मनुष्य ही नहीं देवलोक से देवी-देवता भी उनके दर्शन करने हेतु पधारने लगे. ऐसे में भगवान् शंकर क्यों न आते ? वह भी अपने आराध्य के दर्शन पाने के लिए भिक्षुक-वेष धारण कर अत्यंत उमंग में भरे नन्दभवन के सम्मुख उपस्थित हो गये.]
ऋषि गर्गाचार्य उवाच -
आये हैं गोपाल कृष्ण के दर्शन करने शिव शंकर,
जय गौरीपति गंगाधर....
अलख जगाया नन्दद्वार पर, भिक्षा दे दे माई.
स्वर्णथाल में रत्नों को ले, मातु यशोदा आयीं.
रूप देखकर योगिराज का, मन में सहमीं माता,
विकट वेष में सर्प लपेटे, डमरू खूब बजाता.
आये हैं गोपाल कृष्ण के.........
यशोदा उवाच -
लो भिक्षा दो आशिष बाबा, जीये बाल कन्हैया,
शिव उवाच -
नहीं चाहिए भीख मैं आया, दर्शन करने मैया.
मुखड़ा देखूँ बालकृष्ण का, यह इच्छा है मेरी,
मन का धीरज टूट रहा है, माता करो न देरी.
ऋषि गर्गाचार्य उवाच -
आये हैं गोपाल कृष्ण के.........
यशोदा उवाच -
डर जायेगा तुम्हें देखकर, मेरा बाल कन्हैया.
शिव उवाच -
महाकाल का काल है तेरा, लाल सुनो हे मैया !
धन्य है तेरा भाग्य यशोदे, प्रभु को लाल बनाया,
लीला करने त्रिभुवनपति, तेरे अंकों में आया.
ऋषि गर्गाचार्य उवाच -
आये हैं गोपाल कृष्ण के.........
(दोहा) " हाथ जोड़कर कर रहे, विनती गौरीनाथ,
योगी की अब लाज है, मातु तुम्हारे हाथ."
आये हैं गोपाल कृष्ण के दर्शन करने शिव शंकर,
जय गौरीपति गंगाधर....
यशोदा उवाच -
क्या कहते हो बाबा, मैं तो कुछ भी समझ न पाती.
किन्तु तुम्हारी दशा देखकर, दया मुझे है आती.
ठहरो मैं लाती बालक को, पर ना नज़र लगाना,
दर्शन कर तत्काल यहाँ से, सीधे कदम बढ़ाना.
ऋषि गर्गाचार्य उवाच -
आये हैं गोपाल कृष्ण के.........
जैसे देखा बाल कृष्ण को, मुदित हुये शिव-शंकर,
लगे नाचने विश्वनाथ फिर, डमरू की तालों पर.
आँखों ही आँखों में प्रभु से, महादेव ने बात किया,
जय-जयकार किया नटवर को, मन से आशीर्वाद दिया.
आये हैं गोपाल कृष्ण के.........
* लेखक एवं गीतकार : गौरीशंकर श्रीवास्तव "दिव्य"