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कन्हैया का बालपन



"वसुदेवसुतं देवं,कंस-चाणूर मर्दनम.
देवकी परमानन्दम,कृष्णं वन्दे जगदगुरुम."
[ज से 5242 वर्ष पूर्व भाद्रपद के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को एक ऐसे महापुरुष का अवतरण हुआ था, जिसे भक्त-जन पूर्ण-ब्रह्म और इतर-जन अनाचार प्रपीड़ित मानवता के उद्धारक के रूप में अपनी श्रद्धा समर्पित करते हैं. श्रीकृष्ण के समान पुरुषोत्तम आजतक के समस्त विश्व के इतिहास में दृष्टिगोचर नहीं होता.भारतीय वांग्मय में अलौकिक क्षमता सम्पन्न पुरुष अथवा स्त्री को ही अवतार की संज्ञा प्रदान की जाती है. नि:संदेह,श्रीकृष्ण का सम्पूर्ण जीवन अलौकिक क्षमता सम्पन्न और भगवत्ता से परिपूर्ण है.वह धार्मिक, आध्यात्मिक, यौगिक, नैतिक, सामाजिक, साहित्यिक, सांगीतिक, राजनीतिक आदि सभी विद्याओं के आचार्य और गुरु थे. उनके जीवन में इन सभी विषयों का उत्कृष्टतम समन्वय देखने को मिलता है. उनका जीवन और उनके उपदेश सर्वदेशिक एवं सर्वकालिक हैं. व्यक्ति चाहे किसी भी जाति अथवा धर्म का हो, हर किसी को उनकी महान कथा व् लीलाओं द्वारा प्रेरणा प्राप्त होती है.
 आज "श्रीकृष्ण जन्माष्टमी" के पावन अवसर पर आइये हमसभी उस दीनानाथ प्रभु की भक्ति को ह्रदय से आत्मसात करते हुये गान करें उन शुभ बाल-लीलाओं का, संतों के कथनानुसार, जिनके गायन मात्र से ही प्राणी अपने समस्त दोषों और पापों से मुक्त होकर वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति कर सकने का अधिकारी बन जाता है. ]
करते थे गोप-गोपियाँ दिन रात ही चिन्तन,
ऐसा था मेरे कृष्ण-कन्हैया का बालपन.

छट्ठी के दिन ही कंस ने भेजी थी राक्षसी.
मृत्यु को अपने पूतना पहचान ना सकी.
स्तन में विष लगाके लगी दूध पिलाने.
दे-दे के थपकियाँ लगी बालक को सुलाने.
केशव ने मारकर उसे, उद्धार कर दिया.
कहने लगे व्रजवासी,चमत्कार कर दिया.
झाँकी थी बेमिसाल, था अद्भुत प्रभु-दर्शन.
ऐसा था मेरे कृष्ण-कन्हैया का बालपन.

बन करके बवंडर, जो तृणावर्त आ गया-
गोकुल में चारों ओर, अन्धकार छा गया.
वह श्याम को ले उड़ चला, कुछ दूर गगन में-
था मच गया कोहराम, ब्रज में नन्दभवन में.
सब ढूँढने लगे, कहाँ हैं कृष्ण-कन्हाई ?
विपदाओं भरी ये घड़ी, क्यूँ आज है आयी ?
उस दैत्य का भी कृष्ण ने, हँसके किया मर्दन.
ऐसा था मेरे कृष्ण-कन्हैया का बालपन.

बलदाऊ ने माता से कहा, आओ देख लो-
कान्हा ने खायी माटी है, मुख उसका खोल लो.
माँ पूछने लगीं कि, सच बता दे कन्हैया.
कान्हा ने कहा झूठे हैं, बलदाऊ हे मइया.
मुख खोलकर प्रभु ने, विश्वरूप दिखाया-
ये कैसा चमत्कार है, कैसी तेरी माया !
माँ आँख मूँद कृष्ण का, करने लगीं चिन्तन.
ऐसा था मेरे कृष्ण-कन्हैया का बालपन.

* लेखक - गीतकार : गौरी शंकर श्रीवास्तव "दिव्य"
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