[ भारतीय संस्कृति में भगवान् श्रीगणेशजी का मूल स्वरुप ॐ माना गया है. वह प्रणवस्वरुप हैं, इसीलिए प्रत्येक मंत्र के पहले ॐ लगाते हैं. क्योंकि, परब्रह्म-स्वरुप भगवान गणपति ही सर्वप्रथम पूज्यदेव हैं. हिन्दू धर्म में बिना गणेश-पूजन के कोई भी विधि-विधान, संस्कार, अनुष्ठान आदि मंगलकार्य आरम्भ नहीं किया जाता है.
लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ने उन्हें राष्ट्र-देवता के रूप में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया, ताकि देश का प्रत्येक व्यक्ति श्रीगणपति महाराज के व्यक्तिव्य से प्रभावित होकर अपने भीतर एकता, अनुशासन एवं आत्मसंयम की भावना जागृत कर सके.
गणेश-पूजन न केवल भारत में वरन चीन, जापान ,नेपाल और अफगानिस्तान आदि अन्य देशों में भी किसी न किसी रूप में प्रचलित हैं और वहाँ इसके प्रमाणभूत विशिष्ट प्रकार की मूर्तियाँ व मन्दिर आज भी विद्यमान हैं.
महाराष्ट्र में हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार भाद्रमास के शुक्लपक्ष की चतुर्थी से अनन्त चतुर्दशी तिथि तक प्रभु की भव्य पूजा-अर्चना का उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है एवं उनकी शोभायात्रा में हज़ारों -लाखों की संख्या में श्रद्धालुजन भाग लेते हैं.वास्तव में यह उत्सव भारतीय संस्कृति की एकता व अखण्डता का प्रतीक है.
श्रीगणेश-उत्सव के ऐसे परम-पावन मंगलमय पर्व के अवसर पर हम भी श्रीविघ्नहर्ता के चरणारविंद में नमन करते हैं - ]
गणपति तुमको शत-शत प्रणाम !
परब्रह्म रूप , हे पूर्णकाम !!
गणपति तुमको शत-शत प्रणाम !
सब देवों में प्रभु प्रथम-पूज्य,
तुम विद्या-बुद्धि प्रदाता हो.
जन-जन के संकट हर लेते,
दु:खियों के भाग्य-विधाता हो.
गौरीसुत भक्तों के रक्षक,
है रूप तुम्हारा अति ललाम.
गणपति तुमको शत-शत प्रणाम !
तुम राष्ट्र-देवता भारत के,
जन-मानस के आधार तुम्हीं.
पूजन करते हैं नर-नारी,
हो दीनों के आधार तुम्हीं.
गजबदन विनायक गणनायक,
हैं कितने ही अनगिनत नाम.
गणपति तुमको शत-शत प्रणाम !
काशी में छप्पन रूपों में,
तुम सदा विराजित हो भगवन.
हे मोदक-प्रिय मंगल-दाता !
कल्याण करो गौरी-नन्दन.
शंकर-सुत बेड़ा पार करो,
दर्शन दो प्रभु नयनाभिराम.
गणपति तुमको शत-शत प्रणाम !
* लेखक - गीतकार : गौरी शंकर श्रीवास्तव "दिव्य"