[ जब-जब धरती पर अत्याचार व पापाचार की पराकाष्ठा बढ़ती है और अधर्म के डंके बजते हैं, तो पीड़ित मानव-जाति के उद्धार हेतु कभी स्वयं परमात्मा, तो कभी उसका कोई अंश अथवा पुत्र इस पृथ्वी पर आता है उनका उद्धारक एवं मसीहा बनकर.
ऐसे ही एक युग में जन्म लिया प्रभु ईसा मसीह ने, जिनकी शिक्षायें मानवता के पाठ पढ़ाती हैं. उनके जीवन-चरित हमें नेक रास्ते पर चलने की प्रेरणा देते हैं. प्रभु यीशु का धर्म हर उस व्यक्ति के लिये मान्य है, जो इन्सान होने अथवा इन्सानियत का वास्तविक अर्थ समझता हो, क्योंकि इन्सानियत की राह पर चलना ही वास्तव में ईसाई धर्म है.
अपने जीवन का बलिदान करके भी जो शत्रुओं को क्षमादान कर दे, ऐसी महान विभूति के सन्देश हर उस व्यक्ति के लिये हितकारी हैं, जो संसार और समाज सहित स्वयं को प्रगति के पथ पर बढ़ते देखने की इच्छा रखता है. जिस किसी दिन मानवता पूर्णरूप से हम सबके हृदय में स्थापित हो लेगी, वास्तव में वही दिन प्रभु ईसा मसीह के पुनर्जन्म का दिन होगा. ईसा और इन्सानियत का नाता ऐसा ही कुछ कहता है.]
ईसा ने अपने धर्म में, ये बात बतायी -
'नफ़रत करो तुम पाप से, पापी से न भाई!'
नारी की ज़िन्दगी में आयी, पाप की घड़ी।
पत्थर से मारने उसे, जनता उमड़ पड़ी।।
यीशु ने कहा - 'पहला पत्थर वही मारे-
जिसने किया न पाप कभी, सुन मेरे प्यारे!
बंदे! न कर अधर्म, दे धरम की दुहाई।
नफ़रत करो तुम पाप से, पापी से न भाई।।
पत्थर को फेंक चल दिये, सब लोग वहाँ से।
हिंसा पे उतारू हुये, आये थे जहाँ से।।
यीशु के चरण थाम के, अपराध को माना-
'अबला नहीं पापन हूँ मैं', नारी ने ये माना।।
'कैसे मिटाऊँ पाप व तन मन की बुरायी ?'
जीसस ने बन फ़रिश्ता, उसे राह दिखायी।।
इन्सानियत जगा के ही, इन्सान बनोगे।
जन-जन के बीच प्रेम का, विस्तार करोगे।।
खुद आयेगा खुदा, तुम्हारे जिस्म के अन्दर।
कोई न लग सकेगा फिर, तुमसे बड़ा सुन्दर।।
इन्सानियत को मानना, ही धर्म-ईसाई।
ईसा का है पैगाम, न कर और लड़ाई।।
* लेखक एवं गीतकार : गौरीशंकर श्रीवास्तव "दिव्य"